ज्योतिष उत्तरायण व दक्षिणायन क्रम
जब सूर्य विषुवत वृत्त पर होता है तब इसकी क्रांति 0 होती है यह घटना वर्ष में दो बार होती है सायन मेष और सायन तुला सक्रांति के दिन। सायन मेष से सायन कर्क तक सूर्य की उत्तर क्रांति शून्य से बढ़ते बढ़ते आजकल 23 अंश 27 कला तक हो जाती है। सायन कर्क से घटने लगती है और सायन तुला तक घटकर 0 फिर हो जाती है । सायन तुला से क्रांति दक्षिण होकर सायन मकर तक बढ़कर 23अंश 27 कला हो जाती है।
सायन मकर से सायन मेष तक घटते-घटते शून्य हो जाती है । जब सूर्य सायन मकर से आगे बढ़ता है तब यह उदय या अस्त होने के समय क्षितिज पर उत्तर की ओर खिसकता हुआ दिख पड़ता और यह गति सायन कर्क तक देखी जाती है। इसलिए सायन मकर सक्रांति से सायन कर्क सक्रांति तक के समय को उत्तरायण कहते हैं। परंतु सायन कर्क सक्रांति के उपरांत सूर्य क्षितिज पर दक्षिण की और खिसकता हुआ दिख पड़ता है इसलिए सायन कर्क सक्रांति से सायन मकर सक्रांति तक के समय को दक्षिणायन कहते हैं।
चंद्रमा भी सूर्य की तरह अपने लगभग 1 मास के चक्कर में आधे मास आज तक उत्तरायण और आधे मास तक दक्षिणायन रहता है परंतु इसकी कक्षा क्रांति व्रत से कुछ भिन्न होने के कारण तथा इसकी कक्षा और क्रांतिवृत के संपात स्थानों राहु और केतु से स्वयं वक्री होने के कारण इसके उत्तरायण और दक्षिणायन का समय स्थिर करना कुछ कठिन है।
परंतु मोटे हिसाब से यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि जब चंद्रमा सायन मकर राशि के निकट आता है तब यह उत्तरायण होता है और जब सायन कर्क राशि के निकट आता है तब दक्षिणायन होता है क्योंकि चंद्र कक्षा और क्रांतिवृत्त के बीच का कोण अर्थात चंद्रमा का परम शर केवल 5 अंश 9 कला के लगभग है।
उत्तरायण का अंत सायन कर्क सक्रांति काल में होता है जिस समय सूर्य की उत्तर क्रान्ति परम के समान होती है जो सूर्यसिद्दांत के मत से 24 अंश है। इसलिए इस दिन 24 उत्तर अक्षांश पर सूर्य मध्यान्ह काल में ठीक ऊपर होता है और मध्याह्नकालिक छाया शून्य होती है।इसीप्रकार दक्षिणायन के अंत मे सूर्य की दक्षिण क्रान्ति 24 अंश होती है। इसीलिए इस दिन 24 दक्षिण अक्षांश पर सूर्य ठीक ऊपर होता है परंतु भूपृष्ठ का 24 अंश सारी भूपरिधि का 15 वा भाग है।आजकल यह 23 अंश 27 कला के लगभग है। इसलिए 23 अंश 27 कला उत्तर अक्षांश के देशों पर सायन कर्क सक्रांति के दिन मध्याह्नकाल में सूर्य ठीक ऊपर होता है और इतने ही दक्षिण अक्षांश पर सायन मकर सक्रांति के दिन मध्याह्नकाल में सूर्य ठीक ऊपर होता है ,23 अंश 27 कला उत्तर अक्षांश रेखा को इसलिए कर्क रेखा और 23 अंश 27 कला दक्षिण अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते है। इन दोनों अक्षांशों के बीच के भूभाग को उष्ण कटिबंधीय प्रदेश कहते है क्योंकि यहाँ सूर्य के बारहों महीने ऊपर रहने से गर्मी रहती है।
इसी भूभाग में प्रत्येक स्थान के मध्याहन काल की छाया उत्तर या दक्षिण हो सकती है क्योंकि यहां के किसी स्थान का अक्षांश सूर्य की परम क्रांति से कम होगा इसलिए जब किसी स्थान का अक्षांश और सूर्य की क्रांति एक ही दिशा में है और सूर्य की क्रांति कम है तो मध्याहन छाया उसी दिशा के ध्रुव की ओर होगी परंतु यदि क्रांति अधिक है तो छाया की दिशा उल्टी होगी।
परंतु कर्क रेखा के उत्तर के देशों में मध्याहन छाया की दिशा सदा उत्तर की ओर होगी और मकर रेखा के दक्षिण के देशों में मध्याहन छाया सदा दक्षिण की ओर होगी।