25 मार्च से होंगी नौ शक्तियों की आराधना

25 मार्च से होंगी नौ शक्तियों की आराधना

25 मार्च से नवरात्रि पर्व शुरू होने जा रहा है और 2 अप्रैल को नवरात्रि का आखिरी दिन होगा। इस बार की नवरात्रि कई कारणों की वजह से खास मानी जा रही है। एक तो इस बार किसी तिथि का क्षय नहीं है जिस वजह से मां दुर्गा की उपासना के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे। दूसरा नवरात्रि में कई शुभ योग भी बन रहे हैं। जिनमें चार सर्वार्थसिद्धि योग, 6 रवि योग, एक अमृतसिद्धि योग, एक द्विपुष्कर योग और एक गुरु पुष्य योग बनेगा।

हिंदू पंचांग अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत का पहला दिन है। मान्यता है कि इसी दिन से कालगणना प्रारंभ हुई थी। इसी दिन ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती के कहने पर सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन सूर्य की पहली किरण पृथ्वी पर फैली थी। 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों का उदय और भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार भी इसी दिन हुआ था। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 24 मार्च मंगलवार दोपहर 2:57 बजे से लग जायेगी और बुधवार शाम 05:26 बजे तक रहेगी। 25 मार्च 06:19 ए एम से 07:17 ए एम तक घटस्थापना का मुहूर्त है।

कब कौन सा योग
26 मार्च को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग
27 मार्च को सर्वार्थ सिद्धि योग (06:17 प्रात: से 10:09 प्रात:) और रवि योग
28 मार्च रवि योग
29 मार्च को रवि योग
30 मार्च पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और 06:13 प्रात: से 05:18 रात्रि तक रवि योग
31 मार्च को द्विपुष्कर योग (06:12 प्रात:से 06:44 रात्रि) और रवि योग (07:14 प्रात: से 06:44 रात्रि)
2 अप्रैल पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग (07:29 रात्रि से 06:09 प्रात:, अप्रैल 03), रवि योग (07:29 रात्रि से 06:09 प्रात:, अप्रैल 03)

नवरात्रि के सभी नौ दिन की तिथि:
25 मार्च- प्रथमा तिथि, गुड़ी पड़वा, नवरात्रि आरंभ, घटस्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा, हिंदू नव वर्ष की शुरुआत
26 मार्च- द्वितीया तिथि, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
27 मार्च- तृतीया तिथि, मां चंद्रघंटा की पूजा
28 मार्च- चतुर्थी तिथि, मां कुष्मांडा की पूजा
29 मार्च- पंचमी तिथि, मां स्कंदमाता की पूजा
30 मार्च- षष्ठी तिथि, मां कात्यायनी की पूजा
31 मार्च- सप्तमी तिथि, मां कालरात्रि की पूजा
1 अप्रैल- अष्टमी तिथि, मां महागौरी की पूजा
2 अप्रैल- नवमी तिथि, मां सिद्धिदात्रि की पूजा

नवरात्रि के 9 दिन, इस दिन करें देवी के इस स्वरूप की पूजा

नवरात्रि के पूरे 9 दिनों में किस दिन किस देवी की अराधना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।

शैलपुत्री-

नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा पर घरों में घटस्थापना की जाती है। प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री के स्वरूप का पूजन होता है। शैलपुत्री को देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम माना गया है। मान्यता है कि नवरात्र में पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं नवरात्रों में मां के किस स्वरूप की होती है पूजा।

प्रतिपदा का रंग है पीला-
पीला रंग ब्रह्स्पति का प्रतीक है। किसी भी मांगलिक कार्य में इस रंग की उपयोगिता सर्वाधिक मानी गई है। इस रंग का संबंध जहां वैराग्य से है वहीं पवित्रता और मित्रता भी इसके दो प्रमुख गुण हैं।

2- द्वितीया ब्रह्मचारिणी –
शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात् द्वितीया तिथि पर देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी का दर्शन पूजन किया जाएगा। ब्रह्म का अर्थ तप है और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली। तप का आचरण करने वाली देवी के रूप में भगवती दुर्गा के द्वितीय स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। देवी दुर्गा के तपस्विनी स्वरूप के दर्शन-पूजन से भक्तों और साधकों को अनंत शुभफल प्राप्त होते हैं। संन्यासियों के लिए इस स्वरूप की पूजा विशेष फलदायी है।
द्वितीया पर हरा रंग हर्षित करेगा मन-
हरा रंग बुध ग्रह का प्रतीक माना गया है। इस रंग के उपयोग से जहां जीवन में प्रेम का प्राबल्य बढ़ता है वहीं जीवन में हर्ष को भी प्रवेश मिलता है। हरे रंग का प्रयोग मन-मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। द्वितीया के पूजन में हरे रंग की विशिष्ट महत्ता है।

3-तृतीया चंद्रघंटा-
तृतीया में देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है। देवी पुराण के अनुसार देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप को चंद्रघंटा नाम मिला। देवी के चंद्रघंटा स्वरूप का ध्यान करने से भक्त का इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाता है। शारदीय नवरात्र की तृतीया तिथि पर देवी के दर्शन से सद्गति की प्राप्ति होती है। देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र शुभोभित है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। वाराणसी क्षेत्र के मध्य स्थित हैं। लिंंगपुराण के कथन ‘चंद्रघंटा च मध्यत:’ के अनुसार देवी चंद्रघंटा ही वाराणसी क्षेत्र के रक्षा करती हैं। देवी का मंदिर चौक थाने के निकट मजार के सामने वाली गली में है।

तृतीया पर भूरा रंग दूर रखेगा भ्रम से-
भ्रम व्यक्ति के विकास की सबसे बड़ी बाधा है। तृतीया तिथि पर भूरे रंग का उपयोग आप को भ्रम की बाधा से दूर रखेगा। इस रंग का उपयोग आप को व्यर्थ के विवादों में पड़ने से बचाएगा। साथ ही असमंजस की स्थिति से भी छुटकारा मिलेगा।

4-चतुर्थी कूष्मांडा-
चतुर्थी तिथि पर देवी के कुष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने से मनुष्य के समस्त पापों का क्षय हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रहमांड तक का सृजन देवी ने कूष्मांडा स्वरूप में ही किया था। देवी के कुष्मांडा स्वरूप के दर्शन पूजन करने रोग और शोक का हरण होता है साथ ही साथ यश और धन में भी अपेक्षित वृद्धि होती है।

चतुर्थी तिथि पर नारंगी रंग खोलेगा ज्ञान और ऊर्जा के द्वार
नारंगी रंग लाल और पीले रंग से मिलकर बना है। ऐसे में यह रंग दोनों रंगों का असर एक साथ अपने अंदर समाहित किए रहता है। नारंगी रंग ज्ञान, ऊर्जा, शक्ति, प्रेम और आनंद का प्रतीक है। चतुर्थी तिथि पर इस रंग के उपयोग से मंगल और बृहस्पति दोनों ग्रहों की कृपा एक साथ प्राप्त की जा सकती है। साथ ही सूर्यदेव भी प्रसन्न होते हैं।

5-पंचमी स्कंदमाता-
इस तिथि पर देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप का दर्शन पूजन होता है। भगवती भवानी के पंचम स्वरूप (स्कंदमाता) की उपासना का विशेष विधान शारदीय नवरात्र की पंचमी तिथि पर है। देवी के इस स्वरूप की आराधना से जहां व्यक्ति की संपूर्ण सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं उसके मोक्ष का मार्ग भी सुगम्य हो जाता है। स्कंद कार्तिकेय की माता होने के कारण ही देवी के इस स्वरूप को स्कंदमाता नाम मिला है।
पंचमी पर सफेद रंग देगा शांति और सादगी-
सफ़ेद रंग शांति,पावनता और सादगी को दर्शाता है। इस रंग के प्रयोग से चंद्रमा और शुक्र की कृपा बनी रहती है। मन की एकाग्रता व शांति के लिए पंचमी तिथि पर इस रंगा का उपयोग सर्वोपरि माना गया है। यह रंग चंद्रमा का भी प्रतीक है। पंचमी तिथि के पूजन में इस रंग की प्रधानता लाभदायक होती है।

6-षष्ठी कात्यायनी-
इस दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है। देवी दुर्गा के छठे स्वरूप का दर्शन साधकों को सद्गति प्रदान करने वाला कहा गया है। देवी के दर्शन पूजन का विशेष महात्म्य देवी पुराण और स्कंदपुराण में बताया गया है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवती के इस स्वरूप की महिमा का वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता।
षष्ठी:लाल रंग आप में भरेगा उत्साह और साहस
लाल रंग को मंगल और सूर्य का संयुक्त प्रतीक माना गया है। यह प्रेम, उत्साह और साहस का रंग है। घर की दीवारों का रंग लाल नहीं रखना चाहिए न ही शयनकक्ष में लाल चादर बिछानी चाहिए। षष्ठी तिथि पर लाल रंग का उपयोग आप के लिए लाभदायक होगा।

7-सप्तमी कालरात्रि-
देवी दुर्गा की आराधना क्रम में नवरात्र की सप्तमी तिथि पर देवी के कालरात्रि सवरूप का पूजन किया जाता है।
इनके स्वरूप, स्वभाव और प्रभाव का आभास उनके नाम से ही हो जाता है। अंधकारमय परिस्थितियों का नाश करने वाली देवी अपने भक्त की काल से भी रक्षा करती हैं। देवी कालरात्रि के दर्शन पूजन नौ ग्रहों द्वारा खड़ी की जाने वाली बाधाएं दूर हो जतीा हैं।
सप्तमी पर नीला रंग जोड़ेगा सामाजिकता से-
शारदीय नवरात्र के पूजन में सप्तमी तिथि पर नीले रंग का उपयोग सामाजिक दृष्टिकोण से आप के लिए विशेष रूप से लाभकारी होगा। इस रंग की विशेषता यह है कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव छोड़ता है। यह रंग राहु को नियंत्रित करने वाला भी होता है।

8-अष्टमी महागौरी-
इस तिथि पर देवी के महागौरी स्वरूप का पूजन होगा। देवी दुर्गा के महागौरी का संबंध देवी गंगा से भी है। धर्म गं्रथों में देवी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इस स्वरूप के दर्शन मात्र से पूर्व संचित समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। देवी की साधना करने वालों को समस्त लौकिक एवं अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। पति रूप में शिव को पाने के लिए कठोर तप से देवी कृष्णवर्ण की हो गई थीं तब शिव ने मां गंगा के जल से अभिषेक कर देवी की कांति लौटाई और वह महागौरी कहलाईं।
अष्टमी पर गुलाबी रंग बनाएगा बलशाली-
शुक्र, चंद्र और मंगल का संयुक्त रंग गुलाबी माना गया है लेकिन शुक्र ग्रह इससे सर्वाधिक प्रभावित होता है। शारदीय नवरात्र की अष्टमी तिथि पर इस रंग का अधिकाधिक उपयोग शारीरिक बल को संपुष्ट करता है। शयन और अतिथि कक्ष में इसका उपयोग लाभकारी होगा।

9-नवमी सिद्धिदात्री-
इस तिथि पर देवी के सिद्धिदात्री स्वरूप का दर्शन-पूजन होगा। देवी का यह स्वरूप समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाला है। इसी आधार पर देवी का नामकरण हुआ और उन्हें सिद्धिदात्रि कहा गया।

बैगनी रंग आप में भरेगा ओज-
शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि पर बैगनी रंग का उपयोग आपके जीवन में ओज भरेगा। ज्योतिष में इसे हिंसक रंग भी कहा गया है लेकिन धार्मिक कार्यों में इस रंग का उपयोग सकारात्मक फल देता है। यह रंग आपके आसपास के परिवेष में घुली नकारात्मकता को भी दूर करने में भरपूर सहायक होता है।

नव संवत्सर प्रमादी नव संवत्सर 2077
25 मार्च 2020 को नव विक्रम संवत का आरंभ होगा. 2077 का नव संवत्सर प्रमादी नाम से पुकारा और जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा बुध होंगे और मंत्री चंद्रमा होंगे. श्री साकेत पञ्चांग के ज्योतिषाचार्य अक्षय शास्त्री के अनुसार,प्रमादी नामक संवत के प्रभाव से कृषी के क्षेत्र में विकास देखने को मिल सकता है. अनाज का अच्छा उत्पादन होगा. रस से भरपूर पदार्थों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. गुड़ और चीनी जैसे मीठे पदार्थ भी महंगे होने लगेंगे.
आषाढ़ माह का समय कम वर्षा हो सकती है और भाद्रपद के महीने में अधिक बारिश होने की संभावना रहेगी. इस नव संवत में राजा और मंत्री के मध्य मित्रता की कमी के कारण सरकार की ओर से कुछ कठोर कानून भी लाए जा सकते हैं. विरोधाभास की स्थिति बनी रहने वाली है. नियम एवं कानून में कठोरता और सख्ती के कारण क्रोध बढ़ सकता है.
जरुरी सामान महंगा हो सकती है. कुछ कारणों से , राजनीतिक उथल पुथल भी देखने को मिल सकती है. जातगत हिंसा भी बढ़ सकती है. नव सम्वत्सर का स्थान इस वर्ष वैश्य के घर पर होने के कारण, व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्र में तेजी देखने को मिलेगी. मौसम में बदलाव दिखाई देगा. दूध जैसे पेय पदार्थ महंगे हो सकते हैं. इस समय लोभ व स्वार्थ की स्थिति अधिक दिखाई देगी. व्यापारियों के लिए थोड़ा अधिक लाभ और बेहतर जीवन शैली दिखाई देगी.
देश के दक्षिण प्रांत में अव्यवस्था दिखाई दे सकती है. शासन परिवर्तन और राजनैतिक उतार-चढा़व दिखाई देते हैं. कहीं-कहीं अनाज की कमी भी देखने को मिल सकती है. इस समय लड़ाई झगड़े और एक दूसरे के प्रति असंतोष भी लोगों में बहुत अधिक होगा.
नव संवत के राजा का चयन कैसे होता है
किसी भी नए संवत्सर में राजा का चयन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के वार के अनुसार होता है, अर्थात इस दिन जो वार होता है उस वार के स्वामी को संवत का राजा माना जाता है.
2077 के सम्वत में ग्रहों को निम्न अधिकार प्राप्त होंगे जिनके अनुरुप यह पूरा वर्ष प्रभावित रहेगा. आईए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
सम्वत राजा बुध
श्री साकेत पञ्चांग के ज्योतिषाचार्य अक्षय शास्त्री के अनुसार,इस सम्वत वर्ष के राजा बुध होंगे. बुध के प्रभाव से शुभ एवं मांगलिक कार्यों का आयोजन बना रहेगा पर इसके साथ ही इसमें दूसरों के कारण परेशानी भी उत्पन्न की जा सकती हैं. मानसिक रुप से उत्सुकता और उत्साह की स्थिति अधिक दिखाई देती है. बड़े बुजुर्गों के साथ विरोधाभास भी अधिक रह सकता है. मनोरंजन के क्षेत्र में लोगों का झुकाव अधिक रहने वाला है. धन धान्य और सुख सुविधाओं के प्रति भी अधिक इच्छाएं होंगी.
बुध का प्रभाव लोगों के मध्य चालाकी से काम करने की प्रवृत्ति को बढ़ाने वाला होगा. एक दूसरे के साथ झूठ और छल करने की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी. कला और संगीत के क्षेत्र में अधिक विकास होगा. व्यापारी वर्ग के लिए थोड़ा बेहतर समय होगा. साधु संतों का भी इस समय प्रभाव अधिक रहने वाला होगा. कानून विरोधी काम भी अधिक होंगे.
सम्वत मंत्री चंद्रमा
चंद्रमा के मंत्री होने के कारण भौतिक सुख सुविधाओं का बोलबाला होगा. लोगों का ध्यान भी इस ओर अधिक रह सकता है. वर्षा अच्छी होने की उम्मिद भी की जा सकती है. दूध और सफेद वस्तुओं का उत्पादन भी अच्छा होगा. रस और अनाज में वृद्धि होगी. बाजार में मूल्यों में उतार-चढा़व जल्दी दिखाई देगा. कोई भी स्थिति लम्बे समय तक नहीं रह पाए. असंतोष और दुविधा आम व्यक्ति के मन में बहुत अधिक रहने वाली है.
सस्येश (फसलों) का स्वामी गुरु
इस समय सस्येश गुरु का प्रभाव होने से रस और दूध और फलों की वृद्धि अच्छी होगी. इस समय वेद और धर्म के मार्ग पर जीवन जीने से लोगों का कल्याण होता है. कृषि के क्षेत्र में अच्छा रुख दिखाई दे सकता है. पशुओं से लाभ मिलने की उम्मीद भी दिखाई देती है. खेती से जुड़े व्यापारियों को भी लाभ मिलने की अच्छी उम्मिद दिखाई देती है.
धान्येश मंगल का प्रभाव
धान्येश अर्थात अनाज और धान्य जो हैं उनके स्वामी मंगल होंगे. मंगल के प्रभाव से चना, सरसों बाजरा के मूल्य में वृद्धि देखने को मिल सकती है. तेल जैसे पदार्थों में तेजी आएगी ये वस्तुएं महंगी हो सकती है.
मेघश सूर्य का प्रभाव
मेघेश यानी के वर्षा का स्वामी. इस वर्ष सूर्य मेघेश होंगे. सूर्य के प्रभाव गेहूं, जौ, चने, बाजरा की पैदावार अच्छी होगी. दूध, गुड़ भी अच्छे होंगे, उत्पादन में वृद्धि होगी. सूर्य का प्रभाव कई स्थानों पर वर्षा में कमी ला सकता है. नदी और तालाब जल्द सूख भी सकते हैं.
रसेश शनि का प्रभाव
रसेश अर्थात रसों का स्वामी, रस का स्वामी शनि होने के कारण भूमी का जलस्तर कम हो सकता है. वर्षा होने पर भी जल का संचय भूमि पर नहीं हो पाए. बेमौसमी और प्रतिकूल वर्षा के कारण अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं. कुछ ऎसे रोग भी बढ़ सकते हैं जो लम्बे चलें और आसानी से ठीक न हो पाएं.
नीरसेश गुरु का प्रभाव
नीरसेश अर्थात ठोस धातुओं का स्वामी. इनका स्वामी गुरु है. गुरु के प्रभाव से तांबा, सोना या अन्य पीले रंग की वस्तुओं के प्रति लोगों का झुकाव और अधिक बढ़ सकता है. इनकी मांग बढ़ सकती है.
फलेश सूर्य का प्रभाव
फलेश अर्थात फलों का स्वामी. सूर्य के फलों का स्वामी होने के कारण इस समय वृक्षों पर फल बहुत अच्छी मात्रा में रहेंगे. फल और फूलों की अच्छी पैदावार भी होगी ओर उत्पादन भी बढ़ेगा. पर कुछ स्थान पर इसमें विरोधाभास भी दिखाई देगा जैसे की कही अच्छा होना और कहीं अचानक से कम हो जाना.
धनेश बुध का प्रभाव
धनेश अर्थात धन का स्वामी राज्य के कोश का स्वामी. बुध के धनेश होने के कारण वस्तुओं का संग्रह अच्छे से हो सकता है. व्यापार से भी लाभ मिलेगा और सरकारी खजाने में धन आएगा. धार्मिक कार्य कलापों से भी धन की अच्छी प्राप्ति होगी.
दुर्गेश सूर्य का प्रभाव
दुर्गेश अर्थात सेना का स्वामी. सूर्य के दुर्गेश होने से सैन्य कार्य अच्छे से हो सकेंगे. न्याय पालन करने में लोगों का असहयोग रहेगा. पर कई मामलों में कुछ लोग निड़र होकर कई प्रकार के खतरनाक हथियारों का निर्माण करने में भी लगे रह सकते हैं. सरकारी तंत्र से जुड़े लोग नियमों को अधिक न मानें और अपनी मन मर्जी ज्यादा कर सकते हैं.

नए साल में बुध-चंद्रमा की स्थिति का इन राशियों पर रहेगा असर
मेष- स्वास्थ्य में गिरावट होगी,
वृष- मानसिक कष्ट हो सकता है,
मिथुन- कार्यों में विलंब होगा,
कर्क- संपत्ति लाभ होगा,
सिंह- खर्च बढ़ेंगे,
कन्या- रोग कष्ट,
तुला-भूमि लाभ होगा,
वृश्चिक- वाहन संभलकर चलाएं
धनु- हानि,
मकर- कार्यों में बाधा,
कुंभ- वाहन, भूमि लाभ,
मीन- सुख-संतोष।
12 नहीं 13 महीनों का होगा ये हिंदू वर्ष
ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इस साल अश्विन का अधिक मास रहेगा, जो 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। अश्विन मास होने से श्राद्ध और नवरात्रि के बीच 1 महीने का अंतर रहेगा।
शुभ होता हो अधिक मास
श्री साकेत पञ्चांग के ज्योतिषाचार्य अक्षय शास्त्री के अनुसार, जिस वर्ष अधिक मास होता है वो साल देश और जनता के लिए शुभ फल वाला होता है। अधिक यानी पुरुषोत्तम मास होने से धर्म और कर्म और अर्थ यानी आर्थिक मामलों में तरक्की होती है। हिंदू कैलेंडर और पंचांग गणना के अनुसार 3 साल में एक बार आधिक मास होता है। इस माह के प्रभाव से देश में शांति होती है एवं देश प्रगति करता है। देश की जनता ईमानदारी से धर्म और अपने कर्तव्यों का पालन करती है।

क्यों आता है अधिक मास?
श्री साकेत पञ्चांग के ज्योतिषाचार्य अक्षय शास्त्री के अनुसार,सौरमास 365 दिन का होता है जबकि चंद्रमास 354 दिन का होता है। इससे हर साल 11 दिन का अंतर आता है, जो तीन साल में बढ़कर एक माह से कुछ अधिक हो जाता है। यह 32 माह 16 दिन के अंतराल से हर तीसरे साल में होता है। इस अंतर को सही करने के लिए अधिमास की व्यवस्था की गई है।

अधिक मास की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस अधिमास का कोई स्वामी न होने से देवताओं ने इसे अशुद्ध माना और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य कैसे करें, इस संशय में पड़ गए। तब वे भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने कहा कि आज से मैं इस अधिमास को अपना नाम देता हूं। उन्होंने इसे पुरुषोत्तम मास कहा। तब से इस माह में भागवत कथा व अन्य मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हुआ।

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